हिमाचल मानवाधिकार आयोग अपना दायित्व निभाने में नाकाम, खामियां उजागर करेगा उमंग फाउंडेशन : प्रो. अजय श्रीवास्तव

शिमला, 10 दिसम्बर । उमंग फाउंडेशन के अध्यक्ष प्रो. अजय श्रीवास्तव ने आरोप लगाया कि राज्य मानवाधिकार आयोग अपना दायित्व निभाने में नाकाम साबित हो रहा है और शीघ्र ही उमंग फाउंडेशन एक फैक्ट फाइंडिंग कमेटी बनाकर आयोग की खामियों को उजागर करेगा।

विश्व मानवाधिकार दिवस पर रविवार को आयोजित

एक वेबिनार में प्रो. अजय श्रीवास्तव ने कहा कि मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम 1993 के अंतर्गत गठित राज्य आयोग पूरी तरह से एक सरकारी दफ्तर की तरह काम कर रहा है और उसे समाज के सबसे कमजोर वर्गों के मानवाधिकार संरक्षण की कोई चिंता नहीं है। 

वेबीनार में 50 से अधिक युवाओं और विशेष कर हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के पीएचडी स्कॉलर्स ने हिस्सा लिया। कार्यक्रम की अध्यक्षता भारतीय चुनाव आयोग की ब्रांड एंबेसडर, बेहतरीन दृष्टिबाधित गायिका और शिमला के आरकेएमवी कॉलेज की असिस्टेंट प्रोफेसर मुस्कान ने की।

प्रो अजय श्रीवास्तव ने कहा कि हिमाचल प्रदेश में सबसे अधिक मानवाधिकार उल्लंघन बेसहारा मनोरोगियों, बेघर बुजुर्गों, बेसहारा महिलाओं अनाथ एवं तस्करी कर यहां लाए गए बच्चों, दलितों और दिव्यांगजनों का हो रहा है। समाज में जागरूकता फैलाना राज्य मानवाधिकार आयोग का कानूनी दायित्व है। लेकिन आयोग ने पिछले कई वर्षों से इस दिशा में कोई अभियान नहीं चलाया।

उनका कहना है कि बेसहारा मनोरोगियों को पुलिस बार-बार शिकायत करने के बावजूद कानून के अनुरूप रेस्क्यू नहीं करती है। बेघर महिलाओं और बेसहारा बुजुर्गों को नारी सेवा सदन और वृद्ध आश्रम में भरती कराने के लिए अनेक मुश्किलें पेश आती हैं। बेसहारा मनोरोगियों, बुजुर्गों व महिलाओं की पहचान आधार कार्ड के जरिए स्थापित करने का कोई प्रबंध नहीं है। तस्करी कर प्रदेश में लाए गए बच्चों के मामले उजागर होने पर पुलिस मानव तस्करी की धाराओं में केस दर्ज नहीं करती।

उन्होंने कहा की दृष्टिबाधित एवं अन्य दिव्यांग बच्चों की पढ़ाई के लिए शिक्षण संस्थानों में न तो टॉकिंग सॉफ्टवेयर वाले कंप्यूटरों से लैस लाइब्रेरी है और नहीं रैंप तथा व्हीलचेयर का इंतजाम है। अक्सर स्कूलों में उन्हें दिव्यांगता के आधार पर दाखिला देने से इनकार कर दिया जाता है। मेडिकल एवं इंजीनियरिंग कॉलेज में हाई कोर्ट के आदेशों का उल्लंघन करके विद्यार्थियों से फीस वसूली जाती है। दिव्यांग बच्चों के साथ भी अनेक स्कूलों में भेदभाव होता है और मिड डे मील में उन्हें अलग बैठाया जाता है।

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