ऊना। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण विभाग, जिला ऊना द्वारा आज जिला अस्पताल में नवजात शिशुओं में पाए जाने वाले जन्मजात विकारों की समयबद्ध जांच, प्रारंभिक प्रबंधन और रेफरल पर एक दिवसीय पुनः प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता मुख्य चिकित्सा अधिकारी (सीएमओ) ऊना, डॉ. संजीव कुमार वर्मा ने की। उन्होंने बताया कि जन्मजात विकारों की समय पर जाँच और उचित चिकित्सा न की जाए, तो ये विकार असाध्य हो सकते हैं। इस तरह के प्रशिक्षण कार्यक्रम नवजात शिशुओं की सेहत में सुधार के लिए एक महत्वपूर्ण कदम साबित होते हैं और जन्मजात विकारों से बचाव एवं प्रबंधन के प्रयासों को मजबूती प्रदान करते हैं।इस प्रशिक्षण कार्यक्रम में सीएच हरोली के शिशु विशेषज्ञ डॉ. मनमीत सैनी ने नवजात शिशुओं की जाँच, उनमें पाए जाने वाले जन्म दोषों, उनके प्रारंभिक प्रबंधन और रेफरल पर विस्तृत जानकारी दी। इस एक दिवसीय पुनः प्रशिक्षण कार्यक्रम में जिले के विभिन्न अस्पतालों से शिशु विशेषज्ञ, स्त्रीरोग विशेषज्ञ, अन्य चिकित्सक और स्टाफ नर्सों ने भी हिस्सा लिया।डॉ. सैनी ने भ्रूण के विकास की प्रक्रिया को समझाते हुए बताया कि नवजात शिशु के जन्म के तुरंत बाद उसका सिर से पैर तक परीक्षण करना अत्यंत आवश्यक है, जिससे सामान्यतः पाए जाने वाले जन्मजात विकारों का पता लगाया जा सके। इन विकारों में मस्तिष्क और रीड़ की हड्डी के विकार, कटा होंठ, भंग तालु, क्लब फुट और दिल में छेद जैसी गंभीर बीमारियाँ शामिल हैं। समय पर इन विकारों की पहचान और उचित उपचार से शिशु की जीवन गुणवत्ता में सुधार संभव है। इसके अलावा, उन्होंने जन्मजात विकारों से प्रभावित माता-पिता की काउंसलिंग के महत्व पर भी जोर दिया।इस मौके पर डीपीओ सीएच, डॉ. रिचा कालिया ने बताया कि राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के अंतर्गत जिला ऊना में 10 मोबाइल हेल्थ टीमें कार्यरत हैं, जो ग्रामीण और दूरदराज के क्षेत्रों में सेवाएं दे रही हैं। इसके अतिरिक्त, जिला अस्पताल ऊना में एक डिस्ट्रिक्ट अर्ली इंटरवेंशन सेंटर भी स्थापित किया गया है। इस केंद्र में 0-18 वर्ष की आयु के बच्चों का जन्मजात विकारों का इलाज किया जाता है। यदि कोई भी बच्चा इन विकारों से ग्रसित हो, तो वह जिला अस्पताल ऊना के कमरा नंबर 115 ए स्थित इंटरवेंशन सेंटर में आकर सलाह व उपचार प्राप्त कर सकता है।