शिमला, 21 मई । राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने कहा कि किसी भी संस्थान की असली पहचान न तो उसका भवन होता है और न ही दीवारें, बल्कि उसकी वास्तविक पहचान सदैव उसकी कार्यशैली और उपलब्धियों से प्रदर्शित होती है। भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान यानी इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस स्टडीज (आईआईएएस), शिमला ने शैक्षणिक और शोध उपलब्धियों से अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाई है। संस्थान अकादमिक और बौद्धिक उत्कृष्टता का प्रतीक रहा है। राज्यपाल रविवार को यहां ऐतिहासिक भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला के शोधार्थियों (अध्येताओं एवं सह-अध्येताओं) को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय महत्व का यह संस्थान पूर्व राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन के भारत में ज्ञान और शोध की प्राचीन परंपरा को पुनर्स्थापित करने के स्वपन को साकार कर रहा है। उन्होंने कहा कि यह हम सभी भारतीयों को अपने देशपर गर्व करने का एक और अवसर प्रदान कर रहा है और लंबे समय से अंतःविषय अनुसंधान और महत्वपूर्ण सोच को बढ़ावा देने में सबसे आगे रहा है।
उन्होंने कहा कि यह नवाचार के लिए एक उत्प्रेरक रहा है और इसने हमारे देश के बौद्धिक परिदृश्य को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। उन्होंने कहा कि यह संस्थान मूलतः मानविकी और सामाजिक विज्ञान में गहन सैद्धांतिक अनुसंधान के लिए समर्पित है। उन्होंने संतोष व्यक्त किया कि संस्थान ने बौद्धिक जिज्ञासा और अकादमिक शोध की भावना को बढ़ावा दिया है।
राज्यपाल ने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि आईआईएएस जैसे शोध संस्थान अनुसंधान को बढ़ावा देने के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपने को साकार करने की दिशा में सक्रिय रूप से कार्यशील हैं। उन्होंने कहा कि संस्थान ने अपनी व्यापक उद्यमशीलता के माध्यम से विभिन्न व्याख्यान शृंखलाओं, साप्ताहिक सेमिनारों और अंतर-विश्वविद्यालय केंद्र के माध्यम से देश और दुनिया के प्रसिद्ध विशेषज्ञों द्वारा व्याख्यान आयोजन कर ज्ञान संचित किया है, जो किसी भी संस्थान के लिए अमूल्य है।
उन्होंने कहा कि लगभग दो लाख प्रतिष्ठित विद्वानों की पुस्तकों से सुसज्जित संस्थान का पुस्तकालय एक बड़ी धरोहर है। उन्होंने आशा व्यक्त की कि संस्थान निरंतर अनुसंधान और शोध की संस्कृति को आगे बढ़ाता रहेगा। उन्होंने संस्थान के पुस्तकालय में भारतीय भाषाओं पर आधारित ग्रंथों के एक अलग संग्रह पर बल दिया।