होटल वाइल्ड फ्लावर हॉल मामले की हाईकोर्ट में सुनवाई 29 दिसंबर तक टली

शिमला, 15 दिसंबर। राजधानी शिमला के छराबड़ा में विख्यात होटल वाइल्ड फ्लावर हॉल को लेकर ओबरॉय ग्रुप बनाम हिमाचल सरकार मामले की शुक्रवार को प्रदेश हाईकोर्ट में सुनवाई हुई। इसमें ओबेरॉय पक्ष के वकील की ओर से स्थगन की दरखास्त की गई थी। हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के लिए अगली सुनवाई 29 दिसंबर को निर्धारित की है। इस मामले में हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से अपना पक्ष रखने को कहा था। इसके बाद एचपीटीडीसी की ओर से वारंट ऑफ पोजिशन हाईकोर्ट में दायर किया गया है। एचपीटीडीसी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता आईएन मेहता ने वर्चुअल इस सुनवाई में हिस्सा लिया।

आईएन मेहता ने बताया कि ईस्ट इंडिया होटल लिमिटेड बनाम हिमाचल सरकार मामला शुक्रवार को न्यायमूर्ति सत्येन वैद्य की बेंच में सुनवाई के लिए लगा। उन्होंने बताया कि ओबरॉय पक्ष के वकील राकेश्वर लाल सूद की तरफ से स्थगन की दरखास्त की गई थी। इस बीच न्यायालय ने सरकार से पूछा था कि सरकार इस संपत्ति को लेकर क्या पोजीशन लेना चाहती है, इसको लेकर एचपीटीडीसी की ओर से वारंट का पोजीशन न्यायालय में दायर किया गया है. जिसमें सरकार ने होटल संपत्ति को पुनः अधिग्रहण करने को कहा है।

बता दें कि बीते नवंबर माह हाईकोर्ट के आदेश को अमल में लाते हुए प्रदेश सरकार ने करीब 500 करोड़ की संपति वाले होटल वाइल्ड फ्लावर हॉल को अपने कब्जे में ले लिया था, लेकिन तब सरकार के एग्जीक्यूटिव ऑर्डर पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी।

दरअसल हिमाचल हाईकोर्ट ने अक्टूबर 2022 में इस मामले में हिमाचल सरकार को बड़ी राहत दी थी। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में इस पांच सितारा होटल को सरकार की संपत्ति ठहराया था। अदालत ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार के पास संपत्ति को ओबरॉय ग्रुप और ईस्ट इंडिया होटल कंपनी से वापस लेने का पूरा अधिकार है। अदालत ने कंपनी के साथ किए करार को रद्द करने के निर्णय को सही ठहराया है।

30 साल पहले भीष्ण आग से तबाह हुआ वाइल्ड फ्लावर हॉल

वर्ष 1993 में भीषण आग लगने से वाइल्ड फ्लावर हॉल पूरी तरह से नष्ट हो गया था। इस स्थान पर नया होटल बनाने के लिए राज्य सरकार ने ईस्ट इंडिया होटल कंपनी के साथ करार किया था। करार के अनुसार कंपनी को चार साल के भीतर पांच सितारा होटल का निर्माण करना था। ऐसा न करने पर कंपनी को दो करोड़ रुपये जुर्माना प्रतिवर्ष राज्य सरकार को अदा करना था। वर्ष 1996 में सरकार ने कंपनी के नाम जमीन का स्थानांतरण किया था।

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