शिमला। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने पूर्वोत्तर क्षेत्र की राज्य सरकारों को राज्य निकायों एवं सीपीएसई के मध्य संयुक्त उद्यम सहयोग के माध्यम से पूर्वोत्तर क्षेत्र में जलविद्युत परियोजनाओं के विकासार्थ इक्विटी भागीदारी हेतु केंद्रीय वित्तीय सहायता प्रदान करने संबंधी विद्युत मंत्रालय के प्रस्ताव को स्वीकृति प्रदान कर दी है।
एसजेवीएन लिमिटेड ने अरुणाचल प्रदेश सरकार के साथ संयुक्त उद्यम मोड के माध्यम से राज्य में 5097 मेगावाट की पांच रन-ऑफ-द-रिवर योजना की जलविद्युत परियोजनाओं के निष्पादन के लिए करार ज्ञापन (एमओए) पर हस्ताक्षर किए हैं। ये परियोजनाएं 3097 मेगावाट की एटालिन, 680 मेगावाट की अटुनली, 500 मेगावाट की एमिनी, 420 मेगावाट की अमुलिन और 400 मेगावाट की मिहुम्मडन जलविद्युत परियोजनाएं हैं। इन पांच परियोजनाओं में से एटालिन और अटुनली जलविद्युत परियोजनाएं मंजूरी के अग्रिम चरणों में हैं। इन दोनों परियोजनाओं के निर्माण में लगभग 44,000 करोड़ रुपए का कुल निवेश शामिल होगा और इससे प्रतिवर्ष लगभग 15,787 मिलियन यूनिट विदयुत का उत्पादन होगा।
केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा स्वीकृत इस योजना का परिव्यय ₹ 4136 करोड़ है, जिसे वित्तीय वर्ष 2024-25 से वित्तीय वर्ष 2031-32 तक व्यय किया जाएगा। इस योजना के तहत लगभग 15000 मेगावाट की संचयी जलविदयुत क्षमता का समर्थन किया जाएगा। इस योजना को विद्युत मंत्रालय के कुल परिव्यय से पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिए 10% सकल बजटीय सहायता के माध्यम से वित्त पोषित किया जाएगा। इस योजना में एक केंद्रीय पीएसयू की समस्त परियोजनाओं के लिए राज्य सरकार के साथ एक संयुक्त उद्यम (जेवी) कंपनी के गठन का प्रावधान है।
पूर्वोत्तर क्षेत्र की राज्य सरकार के इक्विटी हिस्से के लिए अनुदान कुल परियोजना इक्विटी के 24% तक सीमित होगा, जो प्रत्येक परियोजना के लिए अधिकतम ₹ 750 करोड़ होगा। यदि आवश्यक हुआ तो प्रत्येक परियोजना के लिए ₹ 750 करोड़ की सीमा पर मामला-दर-मामला आधार पर पुनर्विचार किया जाएगा। संयुक्त उद्यम में सीपीएसयू और राज्य सरकार की इक्विटी का अनुपात अनुदान के वितरण के समय बनाए रखा जाएगा।
इस योजना के क्रियान्वित होने से जलविद्युत विकास में राज्य सरकारों की भागीदारी को बढ़ावा मिलेगा और जोखिम तथा जिम्मेदारियों को अधिक न्यायसंगत ढंग से साझा किया जा सकेगा। राज्य सरकारों के स्टेकहोल्डर बनने से भूमि-अधिग्रहण, पुनर्वास एवं पुनर्स्थापन तथा स्थानीय कानून एवं व्यवस्था जैसे मुद्दे कम हो जाएंगे। इससे परियोजनाओं में लगने वाले अधिक समय एवं लागत दोनों की बचत होगी ।
यह योजना पूर्वोत्तर की जलविद्युत क्षमता के दोहन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी। इससे पूर्वोत्तर क्षेत्र में बड़े स्तर निवेश आएगा और स्थानीय लोगों को अधिक संख्या में प्रत्यक्ष रोजगार के साथ-साथ परिवहन, पर्यटन, लघु-स्तरीय व्यवसाय के माध्यम से अप्रत्यक्ष रोजगार/उद्यमिता के अवसर भी प्राप्त होंगे। जलविद्युत परियोजनाओं का विकास वर्ष 2030 तक 500 गीगावाट नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता स्थापित करने के भारत के राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान को साकार करने में भी योगदान देगा और ग्रिड में आरई ऊर्जा स्रोतों के एकीकरण में सहायता करेगा , जिससे राष्ट्रीय ग्रिड की फ्लेक्सबिलटी, सुरक्षा एवं विश्वसनीयता में वृद्धि होगी।
अरुणाचल प्रदेश में एसजेवीएन द्वारा विकसित की जा रही जलविद्युत परियोजनाएं पूर्ण होने पर, सड़क एवं पुल, सामुदायिक परिसंपत्तियां, स्वास्थ्य देखभाल सेवाएं, महिला सशक्तिकरण, कौशल विकास एवं शिक्षा, रोजगार के विभिन्न अवसरों का सृजन, सततशील विकास आदि के साथ-साथ परियोजना से जुड़े परिवारों को अतिरिक्त लाभ के साथ बुनियादी ढांचे को सुदृढ़ करके समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास के युग का आरंभ होगा ।
अगस्त और दिसंबर-2023 में , अरुणाचल प्रदेश सरकार ने राज्य में कुल क्षमता 12.7 गीगावाट वाली 13 जलविद्युत परियोजनाएं, नामत: एनएचपीसी, नीपको, एसजेवीएन और टीएचडीसीआईएल के विकासार्थ विभिन्न सीपीएसयू के साथ एमओए पर हस्ताक्षर किए हैं। उपुर्यक्त के मद्देनजर, पूर्वोत्तर राज्यों को जलविद्युत परियोजनाओं के विकासार्थ संयुक्त उद्यम गठन में उनकी इक्विटी के रूप में केंद्रीय वित्तीय सहायता प्रदान करने का यह कदम विकसित भारत की दिशा में हमारी यात्रा का एक अग्रणी कदम होगा।