खनन श्रमिकों की सुरक्षा और उनका कल्याण सर्वोच्च प्राथमिकता होनी चाहिए : जी. किशन रेड्डी

नई दिल्ली। नई दिल्ली में स्थित सुषमा स्वराज भवन में कोयला क्षेत्र पर अर्धवार्षिक समीक्षा बैठक बुलाई गई। बैठक की अध्यक्षता केंद्रीय कोयला एवं खान मंत्री जी. किशन रेड्डी ने की। इसमें केंद्रीय कोयला एवं खान राज्य मंत्री सतीश चंद्र दुबे सह-अध्यक्ष के रूप में मौजूद रहे। बैठक में कोयला मंत्रालय के सचिव विक्रम देव दत्त, कोयला मंत्रालय की अतिरिक्त सचिव रूपिंदर बराड़, श्रीमती विस्मिता तेज और कोयला/लिग्नाइट पीएसयू के सीएमडी सहित कोयला मंत्रालय के सभी वरिष्ठ अधिकारी भी उपस्थित थे। यह बैठक चालू परियोजनाओं की प्रगति का आकलन करने, भविष्य की रणनीतियों पर चर्चा करने और कोयला क्षेत्र के विकास पथ को और आगे बढ़ाने को लेकर बुलाई गई थी।

स्थिरता और संसाधन दक्षता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए जी. किशन रेड्डी ने कोयला क्षेत्र में अधिभार (ओबी) के लाभकारी उपयोग पर उच्चाधिकार प्राप्त विशेषज्ञ समिति (एचपीईसी) की रिपोर्ट जारी की।रिपोर्ट में ओबी को मूल्यवान संसाधन के रूप में उपयोग करने के लिए एक व्यापक रूपरेखा तैयार की गई है। पहले अपशिष्ट के रूप में देखे जाने वाले ओबी को अब पर्यावरणीय स्थिरता, आर्थिक विकास और स्थानीय समुदायों के लिए रोजगार के अवसर सृजित करने में महत्वपूर्ण योगदान करने की क्षमता के साथ एक संपत्ति के रूप में स्थापित किया जा रहा है।

अर्धवार्षिक समीक्षा के दौरान डब्ल्यूसीएल की तीन खदानों : पाथाखेड़ा-I यूजी माइन, पाथाखेड़ा-II यूजी माइन और सातपुरा-II यूजी माइन को बंद करने के सर्टिफिकेट प्रदान किए गए। आजादी के बाद यह पहली बार है कि कोयला खदानों को आधिकारिक तौर पर बंद करने के बाद प्रमाण पत्र जारी किए गए हैं। केंद्रीय मंत्री जी. किशन रेड्डी ने डब्ल्यूसीएल के सीएमडी जेपी द्विवेदी, डब्ल्यूसीएल के जीएम (सुरक्षा) दीपक रेवतकर और पाथाखेड़ा क्षेत्र के क्षेत्रीय महाप्रबंधक एलके महापात्र को ये प्रमाण पत्र प्रदान किए।

अपने भाषण की शुरुआत में केंद्रीय मंत्री जी. किशन रेड्डी ने कोयला क्षेत्र में उत्पादन दक्षता और पर्यावरणीय प्रबंधन के महत्व पर जोर दिया। उन्होंने पर्यावरणीय प्रभाव को कम करते हुए कोयला उत्पादन बढ़ाने वाली नवीन प्रौद्योगिकियों को अपनाने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने पर्यावरण को लेकर अपनी चिंता व्यक्त करते हुए सभी हितधारकों से जिम्मेदार खनन कार्यप्रणाली को प्राथमिकता देने का आग्रह किया, जिसमें मान्यता प्राप्त क्षतिपूर्ति वनीकरण पहलों का कार्यान्वयन और कोयले से ढकी भूमि का प्रभावी सुधार शामिल है। इसके अलावा मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि खदानों को बंद करने का प्रबंधन जिम्मेदारी से किया जाना चाहिए। यह सुनिश्चित करते हुए कि प्रभावित समाज का सहयोग किया जाए और पुनर्वास किए गए क्षेत्रों को उत्पादक उपयोग में वापस लाया जाए।

मंत्री ने खनन श्रमिकों के लिए सुरक्षा के महत्व को भी रेखांकित किया। उन्होंने कहा कि सुरक्षा प्रोटोकॉल और चालू प्रशिक्षण कार्यक्रमों के माध्यम से उनके स्वास्थ्य और कल्याण को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। उन्होंने खदान श्रमिकों के परिवारों के लिए चिंता व्यक्त की और इस बात पर जोर दिया कि एक सुरक्षित कार्य वातावरण न केवल श्रमिकों के लिए बल्कि उनके समूह के लिए भी आवश्यक है। उन्होंने हितधारकों से आग्रह किया कि वे सुरक्षा और सामाजिक जिम्मेदारी की संस्कृति को बढ़ावा दें, सक्रिय कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व (सीएसआर) उपक्रमों की आवश्यकता को मजबूत करें जो स्थानीय समाज को शामिल करते हुए उनका उत्थान करते हैं। सामुदायिक जरूरतों के साथ उद्योग कार्यप्रणाली के साथ जोड़कर सामाजिक कल्याण को बढ़ावा देकर और पर्यावरणीय चिंताओं को दूर करके कोयला क्षेत्र आधुनिकता और जिम्मेदारी के मॉडल में बदल सकता है, जो अंततः उद्योग और पर्यावरण दोनों के लिए एक स्थायी भविष्य सुनिश्चित कर सकता है।

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