फॉरेंसिक सेवाएं निदेशालय में जैविक नमूनों के संग्रह और संरक्षण पर कार्यशाला आयोजित

SHIMLA. हिमाचल प्रदेश फॉरेंसिक सेवाएं निदेशालय, जुन्गा, जिला शिमला ने आज डीएनए प्रोफाइलिंग और फॉरेंसिक विषाक्त विज्ञान के लिए जैविक नमूनों के संग्रह और संरक्षण पर एक दिवसीय कार्यशाला का आयोजन को किया। यह कार्यशाला प्रदेश के विभिन्न जिलों के चिकित्सा अधिकारियों के लिए आयोजित की गई, ताकि जैविक एवं भौतिक साक्ष्यों को डीएनए प्रोफाइलिंग और फॉरेंसिक टॉक्सीकोलॉजी के रासायनिक परीक्षण के लिए एकत्रित किए जा सके।
फॉरेंसिक सेवाएं निदेशालय के एक प्रवक्ता ने बताया कि मुख्यमंत्री ठाकुर सुखविंद्र सिंह सुक्खू की अध्यक्षता में पिछले वर्ष आयोजित हिमाचल प्रदेश फॉरेंसिक विकास बोर्ड की बैठक में फॉरेंसिक विज्ञान से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की गई थी तथा आज की कार्यशाला भी इस कार्यक्रम के अंतर्गत आयोजित की गई।
निदेशक फॉरेंसिक सेवाएं डॉ. मीनाक्षी महाजन ने कार्यशाला के दौरान अपने संबोधन में कहा कि आज के युग में डीएनए की महता बहुत बढ़ गई है इसलिए चिकित्सा अधिकारियों द्वारा हत्या एवं बालात्कार जैसे संगीन मामलों में साक्ष्यों को एकत्रित एवं संरक्षित करके अन्वेषण अधिकारियों को सौंपना एक अहम जिम्मेदारी बन गई है। उन्होंने कहा कि चिकित्सा अधिकारियों को जघन्य अपराधों से संबंधित मामलों में नवीनतम जानकारी होना आवश्यक है।
प्रवक्ता ने बताया कि राज्य फॉरेंसिक विज्ञान प्रयोगशाला में फॉरेंसिक की अलग-अलग विशिष्टताओं से संबंधित प्रशिक्षण कार्यक्रम समय-समय पर पुलिस अन्वेषण अधिकारियों, चिकित्सा अधिकारियों, अभियोजन अधिकारियों तथा नए भर्ती हुए जजों के लिए समय-समय पर आयोजित की जाती हैं ताकि अपराधिक चांच और न्यायायिक विज्ञान के मानकों की जानकारी दी जा सके।
उन्होंने जानकारी दी कि भारतीय नागारिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) कानून की धारा 176(3) के अनुसार जिन आपराधिक मामलों में 7 साल की सजा का प्रावधान है उनमें फॉरेंसिक विशेषज्ञों का घटना स्थल का दौरा और साक्ष्य एकत्रित करना आवश्यक कर दिया गया है। कार्यशाला में हिमाचल प्रदेश के चिकित्सा अधिकारियों को अपराध संबंधित बारिकियों से अवगत करवाया गया।

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