शिमला।एचपीयू के प्रो. विवेकानंद तिवारी की होली पर पुस्तक प्रकाशित पुस्तक ; होली। इस पुस्तक में होली के वैदिक स्वरुप, होलिका दहन की पौराणिक कथा, श्रीकृष्ण राधा और राम-सीता से से होली का आरम्भ, मजब से ऊपर होली, सामाजिक समरसता मे होली की भूमिका, होली के समृद्ध शास्त्रीय गीत, लोक परम्परा में होली होली के बैज्ञानिक पक्ष, होली के रंगों का मानव के स्वास्थ्य पर प्रभाव, विभिन्न राज्यों में होली के नाम और परम्परा, विदेशो में कहा-कहा होली खेला जाता है। आदि विषयो को रखा गया है
होली वास्तव में एक वैदिक यज्ञ है, जिसका मूल स्वरूप आज विस्मृत हो गया है।
वैदिक काल में इस पर्व को ‘नवान्नेष्टि’ कहा गया है। इस दिन खेत के अधपके अन्न का हवन कर प्रसाद बांटने का विधान है। इस अन्न को होला कहा जाता है, इसलिए इसे होलिकोत्सव के रूप में मनाया जाता था।
महाकवि माघ (750 ई.) ने पिचकारी का वर्णन किया है।
प्राचीन भारतीय मंदिरों की दीवारों पर होली उत्सव से संबंधित विभिन्न मूर्ति या चित्र अंकित पाए जाते हैं। ज्ञात रूप से यह त्योहार 600 ईसा पूर्व से मनाया जाता रहा है। सिंधु घाटी की सभ्यता के अवशेषों में भी होली मनाए जाने के सबूत मिलते हैं।सुप्रसिद्ध मुस्लिम पर्यटक अलबेरुनी ने अपनी यात्रा संस्मरण में ‘होलिकोत्सव’ का वर्णन किया है
होली का सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण भी बेहद गहरा है। होली के रंग में हम सब एक रंग और एक भाव से सराबोर होते हैं, ठीक उसी ऊर्जा, ऊष्मा, एकरूपता, ध्येय और लक्ष्य के साथ बदलते परिदृश्य में राष्ट्रनिर्माण के लिए सराबोर होने की भी आवश्यकता है।
प्रो. विवेकानंद तिवारी ने कुम्भ
प्रो.तिवारी की 180 से ज्यादा पुस्तकें और 250 से ज्यादा शोध पत्र प्रकाशित हो चुके है
अनेक संस्थाओं से डॉ.तिवारी को प्राप्त सम्मानो में “भारत भारती सम्मान, ” मालवीय शिक्षा सम्मान”,”राष्ट्र गौरव सम्मान”एवं”महाशक्ति सम्मान” “शारदा शताब्दी सम्मान”विशेष उल्लेखनीय है
आपकी पुस्तकों का लोकार्पण शंकराचार्य, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति, संघप्रमुख और अनेक राज्यों के राज्यपाल ने कर चुके हैं
सम्प्रति आप हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय, शिमला में प्रोफेसर और हेड है।