राज्यपाल ने किया अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारम्भआई.आई.ए.एस. ने किया महर्षि दयानन्द व उनकी परम्परा पर संगोष्ठी का आयोजन


युगप्रवर्तक महापुरुष थे दयानन्द सरस्वतीः शुक्ल

शिमला। राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल ने कहा कि मौजूदा परिप्रेक्ष्य में भारती संस्कृति को वर्तमान परिस्थितियों के अनुसार देखने और समझने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि भारत को दुनिया की अग्रिम पंक्ति में लाने के लिए हमें अपनी गौरवपूर्ण संस्कृति पर गर्व करना होगा।
राज्यपाल आज यहां भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान, शिमला द्वारा महर्षि दयानन्द सरस्वती की 200वीं जयन्ती के उपलक्ष्य पर आयोजित त्रिदिवसीय अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी के शुभारम्भ अवसर पर बतौर मुख्य अतिथि संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि महर्षि दयानन्द एक युगप्रवर्तक महापुरुष थे, जिन्होंने समग्र क्रान्ति का सूत्रपात कर ‘‘वेदों की ओर लौट चलो’’ का नारा दिया। उन्होंने कहा कि स्वामी जी ने वैदिक संस्कृति, धर्म व दर्शन की रक्षा के लिए वैदिक सन्देश का प्रचार किया तथा वैदिक धर्म में आयी विकृतियों को दूर करने का ठोस प्रयास किए। उन्होंने समाज सुधार की दिशा में अनेक कार्य किए जिनमें जाति प्रथा एवं छुआछूत को दूर कर दलितोद्धार का कार्य, बाल विवाह एवं सती प्रथा का विरोध तथा विधवा विवाह का समर्थन आदि शामिल है। उन्होंने कहा कि पहली बार वेदों का लोकभाषा में अनुवाद कराने का श्रेय स्वामी दयानन्द को ही जाता है।
राज्यपाल ने कहा कि उनकी वेदभाष्य पद्धति ने वेद-व्याख्या की भावी दिशा निर्धारित की। उन्होंने गुरुकुल शिक्षा प्रणाली को पुनर्जीवित किया। आज पूरे देश में हजारों गुरुकुल चल रहे हैं, जहां से निकले विद्यार्थियों ने विश्व में वैदिक संस्कृति की रक्षा और देश का नाम ऊँचा किया है। उन्होंने कहा कि महर्षि दयानन्द ने नारी जागरण का उद्घोष किया एवं स्त्री-शिक्षा के लिए अथक प्रयास किये। अनेक कन्या गुरुकुलों एवं महिला महाविद्यालयों की स्थापना इसी का परिणाम है। वैदिक संस्कृति की रक्षार्थ स्वामी जी ने बहुविध प्रयास किये। उनके द्वारा लिखी गई अनेक पुस्तकें जिनमें संस्कार विधि, ‘‘गोकरुणानिधि’’ और सत्यार्थप्रकाश शामिल है, समाज को दिशा देने मे सहायक सिद्ध हुई।
उन्होंने कहा कि उन्होंने ही सर्वप्रथम स्वराज्य एवं स्वदेशी का महत्त्व प्रकट किया। उनके तेजस्वी आह्वान से प्रेरित होकर अनेकानेक भारतीय युवक स्वाधीनता-आन्दोलन में सक्रिय हुए। उन्होंने कहा कि देश को स्वतन्त्र बनाने के लिए जितने भी आन्दोलन हुए, उनपर किसी न किसी रूप में महर्षि दयानन्द और उनके द्वारा स्थापित आर्यसमाज का प्रभाव रहा। उनकी प्रेरणा एवं प्रभाव से भारत के स्वाधीनता आन्दोलन को अत्यधिक बल मिला। उन्होंने कहा कि स्वामी जी की शिक्षाएं आज अधिक प्रासंगिक हैं।
उन्होंने भारतीय ज्ञान-परम्परा के संवर्धन एवं प्रचार-प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए संस्थान की सराहना भी की।
इससे पूर्व, आईआईएएस की गवर्निंग बॉडी की अध्यक्ष प्रो. शशि प्रभा कुमार ने राज्यपाल का स्वागत किया और सेमिनार के विषय पर विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने स्वामी दयानंद सरस्वती के लेखन कार्यों विशेषकर संस्कृत और स्थानीय भाषा के प्रचार-प्रसार पर विस्तृत जानकारी दी। कन्या शिक्षा के लिए उनके योगदान को याद करते हुए उन्होंने कहा कि उनके इस योगदान के परिणामस्वरूप आज महिलाएं विकास के विभिन्न क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभा रही हैं।
प्रोफेसर नागेश्वर राव, निदेशक, आईआईएएस और कुलपति, इग्नू, दिल्ली ने नई दिल्ली से वर्चुअल मोड पर संगोष्ठी को संबोधित किया।
संस्थान के उपाध्यक्ष प्रो. शैलेन्द्र राज मेहता ने कहा कि महर्षि को जानना है तो उनके युग का आकलन करना जरूरी है। भारतीय परम्परा के प्रति अंग्रजों ने जो विचार दिए उनके खिलाफ 1875 में स्वामी दयानंद ने विरोध की आवाज़ उठाई। उन्होंने कहा कि आने वाले वर्षों में हम अपना कथानक स्वयं लिखेंगे।
आईआईएएस के सचिव श्री मेहर चंद नेगी ने धन्यवाद प्रस्ताव प्रस्तुत किया।
राज्यपाल के सचिव श्री राजेश शर्मा, विशिष्ट अतिथि के तौर पर उपस्थित पंडिता इंद्रराणी रामप्रसाद तथा अन्य गणमान्य व्यक्ति इस अवसर पर उपस्थित थे।

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