मंडी, 02 मार्च । दिल्ली के प्रगति मैदान 25 फरवरी से पांच मार्च तक जारी विश्व पुस्तक मेले में हिमाचल प्रदेश के चर्चित लेखक मुरारी शर्मा की पुस्तक देबकू एक प्रेम कथा पाठकों का ध्यान आकर्षित कर रही है। नेशनल बुक ट्रस्ट और अन्य संस्थाओं द्वारा आयोजित किए जा रहे इस पुस्तक मेेले में देश भर से प्रकाशक भाग ले रहे हैंं । विश्व पुस्तक मेले का देश भर के लेखकों को साल भर इंतजार रहता है…इस दौरान रिलीज होने वाली पुस्तकों के लिए पाठकों का बहुत बड़ा बाजार उपलब्ध रहता है । इसी कड़ी में हिमाचल क कथाकार मुरारी शर्मा का ताजा उपन्यास अंतिका प्रकाशन की ओर से जारी किया गया है ।
उपन्यास के लेखक मुरारी शर्मा का कहना है कि यह उपन्यास मंडी जनपद की बहुचर्चित प्रेमगाथा देबकू-जिंदू के मशहूर लोकगीत पर आधारित है । मंडी जनपद का नगरोटा गांव इस प्रेमगाथा का प्रमुख केंद्र रहा है । जहां का पानी का नौण और यहां की हवेलियों के आसपास यह प्रेमगाथा परवान चढ़ी और राजदरबार तक इसकी धमक रही …यहीं इसी पानी के नौण पर उनका प्यार परवान चढ़ा और फिर इसी गांव की सडक़ पर रोड़ी कूटते-कूटते देबकू के हाथों में छाले पड़ गए और मंडी रियासत के दरबार के मोहतबीर व्यक्ति गाहिया नरोतम की नजर उस पर पड़ती है तो वह उसे अपने साथ मंडी शहर में ले आता है ।
मुरारी शर्मा ने बताया उनकी इस किताब को लेकर पुस्तक मेले से दोस्तों और पाठकों के फोन उन्हें आ रहे हैं जो अपनी प्रतिक्रिया भी दे रहे हैं । वरिष्ठ कवि सतीश धर का कहना है कि मेले में देबकू एक प्रेमकथा देखी तो उसे लेकर वे वापस घर लौट आए और रात डेढ़ बजे तक उसे पढ़ कर खत्म भी कर दिया। उनका कहना है कि कथाकार मुरारी शर्मा का सद्य-प्रकाशित उपन्यास देबकू एक प्रेम गाथा इसी औरत की प्रेम कहानी को साथ ले कर लोक साहित्य में रुचि रखने वाले पाठकों को आह्लादित करता है। इतिहास के उन सूक्ष्म पहलुओं से भी हो कर गुजरता है जिनसे कथाकार उन्हें ले जाना चाहता है । कथाकार मुरारी शर्मा, जो खुद भी इसी क्षेत्र से हैं, ने मंडी के लोक का गहन अध्ययन कर इस उपन्यास की रचना की है । वहीं पर अपने इस नए उपन्यास के बारे में मुरारी शर्मा का कहना है कि देबकू-जिंदू एक ऐसी अनूठी प्रेम कहानी है जो गीत बनकर सदा के लिए अमर हो गई। हिमाचल प्रदेश के मंडी जिला का एक ऐसा लोकगीत जो जनपद के बच्चे-बूढ़े सबकी जुबान पर है…। ऐसा लोकगीत जो ने केवल इस जनपद के इतिहास, अपने समय और समाज की झलक दिखाता है…बल्कि औरत के प्रति तत्कालीन समाज के नजरिए को भी दर्शाता है ।
वहीं देबकू के जीवट और साहस का भी परिचय करवाता है…यह न तो शीरी-फरहाद का किस्सा है और न ही रोमियों जुलियट की दुखांत प्रेम कहानी है। देबकू जो इस प्रेमगाथा की नायिका है…वह रूप सौंदर्य की प्रतिमूर्ति थी, ऐसा रूप सौंदर्य जिसने अपने दौर की स्त्री के सौंदर्य का शास्त्र गढ़ा और अपने प्रेम को भी नई अभिव्यक्ति दी…जब समाज में महिलाओं का दर्जा दोयम ही था। अगर ऐसा न होता तो शायद यह लोकगीत भी न बनता…और देबकू-जिंदू की यह प्रेमगाथा लोकगीत बनकर अमर न हो जाती…।
उन्होंने बताया कि पाठकों में इस उपन्यास को लेकर भारी उत्सुकता है। दिल्ली प्रगति मैदान से छायाकार एवं गज़लकार मित्र प्रकाश बादल ने अंतिका के स्टॉल से देबकू एक प्रेमकथा का चित्र भेजा है। वहीं जो लोग दिल्ली नहीं जा पाए हैं वे एमाजोन से मंगवा रहे हैं । धर्मशाला से मित्र सचिन संगर और सरकाघाट कालेज में हिंदी की प्रवक्ता रीता ने ऑन लाईन पुस्तक मंगवाकर प्रथम पाठक होने का दावा किया है। जबिक डा. चिरंजीत परमार बागवानी वैज्ञानिक उन्होंने भी ऑन लाईन आदेश दे दिया है। मुरारी शर्मा ने बताया कि विश्व पुस्तक मेले के बाद यह किताब सजिल्द और पेपर बैक दो संस्करणों में मंडी में उपलब्ध रहेगी ।