11 नवंबर से होगा रामपुर बुशहर अंतरराष्ट्रीय लवी मेले का आगाज, राज्यपाल करेंगे शुभारंभ

शिमला, 07 अक्टूबर। 300 साल पुराने रामपुर बुशहर का अंतरराष्ट्रीय लवी मेला 11 से 14 नवंबर तक आयोजित होगा। इसका आयोजन पीजी कॉलेज रामपुर के मैदान में होगा। सांस्कृतिक संध्या पदम राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला रामपुर में आयोजित की जाएंगी। शिमला के उपायुक्त आदित्य नेगी ने शनिवार को यह जानकारी दी।
मेले की तैयारियों को लेकर रामपुर में आयोजित एक बैठक की अध्यक्षता करते हुए उपायुक्त ने बताया कि 11 नवंबर को माननीय राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ल मेला का आगाज करेंगे और 14 नवंबर को मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू समापन समारोह में शिरकत करेंगे।
उन्होंने कहा कि लवी मेला के दौरान स्टाल के आवंटन में पारदर्शिता बरती जाएगी ताकि सबलेटिंग की समस्या से निजात मिल सके और ग्रामीण लोगों को वस्तुएं उचित दाम पर उपलब्ध हो सके।
आदित्य नेगी ने कहा कि लवी मेला के दौरान विभिन्न विभागों द्वारा वर्तमान राज्य सरकार की जनकल्याणकारी नीतियों पर प्रदर्शनी आयोजित की जाएगी ताकि लोगों को समावेशी योजनाओं की जानकारी प्राप्त हो सके और वह लाभान्वित हो सके।
उन्होंने नगर परिषद से आय व्यय एवं सफाई व्यवस्था, विद्युत विभाग से विद्युत आपूर्ति, जल शक्ति विभाग से पेयजल व्यवस्था, परिवहन विभाग से ग्रामीण क्षेत्र से बसें उपलब्ध करवाने पर गहनता से विचार विमर्श किया और आवश्यक दिशा निर्देश दिए ताकि मेला का आयोजन सुचारू रूप से संभव हो सके।
उन्होंने पुलिस विभाग को संवेदनशील स्थान पर सीसीटीवी कैमरा स्थापित करने के आदेश दिए ताकि असामाजिक तत्वों पर पैनी नजर रखी जा सके। उन्होंने अग्निशमन विभाग रामपुर को फायर हाइड्रेंट दुरुस्त करने के निर्देश दिए ताकि किसी भी आपदा का सामना किया जा सके।
उपायुक्त ने 4 से 6 नवंबर को आयोजित होने वाली अश्व प्रदर्शनी पर विस्तृत चर्चा की और घुड़दौड़ में इनाम की राशि को 10000 रुपए करने की घोषणा की।

यह केवल व्यापारिक मेला ही नहीं, बल्कि इस मेले में हिमाचल प्रदेश की पुरानी संस्कृति की विशेष झलक दिखाई देती है। मेले के बारे में मान्यता है कि बुशहर के राजा केहर सिंह और तिब्बती सेनापति की संधि हुई थी और दोनों तरफ के व्यापारियों को छूट दी गई। वर्ष 1911 में तत्कालीन राजा केहर सिंह के समय से मेले में तिब्बत, अफगानिस्तान के व्यापारी यहां कारोबार करने आते थे। यहां के व्यापारी ड्राई फ्रूट, ऊन, पशमीना और पशुओं सहित घोड़े लेकर रामपुर पहुंचते थे। इसके बदले में रामपुर से नमक, गुड़ सहित अन्य राशन लेकर जाते थे. नमक मंडी जिला के गुम्मा से यहां लाया जाता था। करंसी का इस्तेमाल उस वक्त नहीं किया जाता था।

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