हिमाचल सरकार ने हाईकोर्ट में दिया जवाब, हर हाल में चाहिए होटल वाइल्ड फ्लावर हॉल

शिमला, 22 नवम्बर। राजधानी शिमला से सटे छराबड़ा में पांच सितारा होटल वाइल्ड फ्लावर हॉल के सरकारी अधिग्रहण पर रोक के बाद मंगलवार को एक बार फिर इस मामले की हाईकोर्ट में सुनवाई हुई।  न्यायाधीश न्यायमूर्ति सत्येन वैध की कोर्ट में सुनवाई के दौरान राज्य सरकार ने इस मामले में अपना जवाब दायर किया। मामले में अगली सुनवाई 24 नवम्बर को तय हुई है। 

महाधिवक्ता अनूप रत्न ने बताया कि राज्य सरकार ने अपने जवाब में लिखित तौर पर यह स्पष्ट कर दिया है कि होटल वाइल्ड फ्लावर हॉल की संपति को सरकार अपने अधीन लेना चाहती है। सरकार ने तर्क दिया है कि 

अवार्ड की शर्तों को पूरा करने में होटल विफल रहा है। ऐसे में आज की स्थिति के मद्देनजर सरकार इस संपति पर अपना कब्जा चाहती है। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट में अगली सुनवाई 24 नवम्बर को होगी।

इससे पहले बीते शनिवार को हाईकोर्ट के आदेश को अमल में लाते हुए प्रदेश सरकार ने करीब 500 करोड़ की संपति वाले होटल वाइल्ड फ्लावर हॉल को अपने कब्जे में ले लिया था, लेकिन तब सरकार के एग्जीक्यूटिव ऑर्डर पर हाईकोर्ट ने रोक लगा दी थी। 

उधर, ओबरॉय समूह के वकील राकेश्वर लाल सूद ने बताया कि हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट में मामले की सुनवाई के दौरान सरकार ने अपना पक्ष रखा। उन्होंने बताया कि सरकार की ओर से इस मामले में अदालत से समय मांगा गया था, जिस पर हाईकोर्ट ने सुनवाई के लिए अगली तारीख 24 नवम्बर की निर्धारित की है।

हिमाचल हाईकोर्ट ने अक्टूबर 2022 में इस मामले में हिमाचल सरकार को बड़ी राहत दी थी। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में इस पांच सितारा होटल को सरकार की संपत्ति ठहराया था। अदालत ने स्पष्ट किया कि राज्य सरकार के पास संपत्ति को ओबरॉय ग्रुप और ईस्ट इंडिया होटल कंपनी से वापस लेने का पूरा अधिकार है। अदालत ने कंपनी के साथ किए करार को रद्द करने के निर्णय को सही ठहराया है।

30 साल पहले भीष्ण आग से तबाह हुआ वाइल्ड फ्लावर हॉल

वर्ष 1993 में भीषण आग लगने से वाइल्ड फ्लावर हॉल पूरी तरह से नष्ट हो गया था। इस स्थान पर नया होटल बनाने के लिए राज्य सरकार ने ईस्ट इंडिया होटल कंपनी के साथ करार किया था। करार के अनुसार कंपनी को चार साल के भीतर पांच सितारा होटल का निर्माण करना था। ऐसा न करने पर कंपनी को दो करोड़ रुपये जुर्माना प्रतिवर्ष राज्य सरकार को अदा करना था। वर्ष 1996 में सरकार ने कंपनी के नाम जमीन का स्थानांतरण किया था।

छह वर्ष बीत जाने के बाद भी कंपनी ने पूरी तरह होटल को उपयोग के लिए नहीं बनाया। 2002 में सरकार ने कंपनी के साथ किए गए करार को रद्द कर दिया। सरकार के इस निर्णय को कंपनी लॉ बोर्ड के समक्ष चुनौती दी गई। बोर्ड ने कंपनी के पक्ष में फैसला सुनाया था। सरकार ने इस निर्णय को हाईकोर्ट की एकल पीठ के समक्ष चुनौती दी। हाईकोर्ट ने मामले को निपटारे के लिए मध्यस्थ के पास भेजा। मध्यस्थ ने कंपनी के साथ करार रद्द किए जाने के सरकार के फैसले को सही ठहराया था और सरकार को संपत्ति वापस लेने का हकदार ठहराया था। इसके बाद एकल पीठ के निर्णय को कंपनी ने खंडपीठ के समक्ष चुनौती दी थी।  

खंडपीठ ने कंपनी की अपील को खारिज करते हुए अपने निर्णय में कहा कि मध्यस्थ की ओर से दिया गया फैसला सही और तर्कसंगत है। कंपनी के पास यह अधिकार बिलकुल नहीं कि करार में जो फायदे की शर्तें हैं, उन्हें मंजूर करे और जिससे नुकसान हो रहा हो, उसे नजरअंदाज करे।

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