शिमला, 05 मार्च। हिमाचल प्रदेश के बुनकरों ने हथकरघा व हस्तशिल्प के अपने पारम्परिक कौशल से देश-विदेश में राज्य का नाम रोशन किया है। हथकरघा उद्योग क्षेत्र में प्रदेश की कढ़ाई वाली कुल्लवी तथा किन्नौरी शॉल ने अन्तरराष्ट्रीय बाजार में अपनी एक अलग पहचान कायम की है।
एक सरकार प्रवक्ता ने रविवार को यह जानकारी दी।
उन्होंने कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा बुनकरों को प्रोत्साहित करने के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। विभिन्न जागरूकता शिविरों के आयोजन के साथ-साथ प्रशिक्षण भी प्रदान किया जा रहा है। ये बुनकर कलस्टर विकास कार्यक्रम के विभिन्न घटकों के माध्यम से भी लाभान्वित किए जा रहे हैं। हथकरघा से संबंधित उपकरण भी बुनकरों के लिए उपलब्ध करवाए जा रहे हैं।
प्रवक्ता ने बताया कि उद्योग विभाग द्वारा प्रदेश तथा अन्य राज्यों में आयोजित मेलों तथा प्रदर्शनियों के माध्यम से विपणन सुविधा भी उपलब्ध करवाई जा रही है। बुनकरों के उत्पादों को व्यापार मेलों, दिल्ली हॉट, सूरजकुंड मेलों इत्यादि राष्ट्र स्तरीय आयोजनों में भी व्यापक स्तर पर विपणन की सुविधा उपलब्ध करवाई जा रही है।
उन्होंने कहा कि हथकरघा उद्योग में प्रदेश की प्रमुख सहकारी समितियों में शामिल ‘हिमबुनकर’ बुनकरों तथा कारीगरों की राज्य स्तरीय संस्था है, जो कई वर्षों से कुल्लवी शॉल तथा टोपी को बढ़ावा दे रही है।
प्रवक्ता के मुताबिक कुल्लवी हथकरघा उत्पादों का इतिहास बहुत रूचिकर है। प्रसिद्ध चित्रकार निकोलस रोरिक की पुत्रवधू तथा भारतीय फिल्म अभिनेत्री देविका रानी वर्ष 1942 में कुल्लू आई तथा उनके आग्रह पर बनोन्तर गांव के शेरू राम ने अपने हथकरघा पर पहली शॉल बुनी। इसके उपरान्त, उनके हथकरघा कौशल से प्रेरित होकर पंडित उर्वी धर ने शॉल का व्यापारिक उत्पादन आरम्भ किया।
उन्होंने कहा कि वर्ष 1944 में भुट्टी बुनकर सहकारी समिति, पंजाब सहकारी समिति लाहौर के तहत पंजीकृत की गई, जिसे आज भुट्टिको के नाम से जाना जाता है। भुट्टिको ने कुल्लू की हजारों महिलाओं को कुल्लवी शॉल बनाने की कला में प्रशिक्षण प्रदान किया है। वर्ष 1956 में ठाकुर वेद राम भुट्टिको के सदस्य बने तथा इसे पुनः गति प्रदान की। इसके उपरान्त, भुट्टिको के अध्यक्ष सत्य प्रकाश ठाकुर ने इस संस्था को पूरे प्रदेश में संचालित किया। इस कुटीर उद्योग में प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष रूप से हजारों लोगों को रोजगार प्रदान किया जा रहा है। कुल्लवी शॉल के उत्पादन में देवी प्रकाश शर्मा का भी महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने कुल्लू शॉल सुधार केन्द्र के तकनीशियन के तौर पर 1960 के दशक के दौरान कुल्लवी शॉल के अनेक डिजाइन तैयार किए।
उन्होंने कहा कि वर्तमान में भुट्टिको सालाना लगभग 13.50 करोड़ रुपये का करोबार कर रही है। प्रदेश सरकार ने बुनकरों को प्रोत्साहित करने तथा वस्त्र उत्पादन की अद्यतन तकनीकों को शामिल करने के लिए अनेक योजनाएं आरम्भ की हैं।
प्रवक्ता ने बताया कि पूर्व में कुल्लू में साधारण शॉल तैयार की जाती थी, लेकिन जिला शिमला के रामपुर के बुशैहरी हस्तशिल्पियों के आगमन के उपरान्त अलंकृत हथकरघा उत्पाद अस्तित्व में आए। सामान्य कुल्लवी शॉल के दोनों ओर रेखांकित डिजाइन बनाए जाते हैं। इसके अलावा, कुल्लवी शॉल के किनारों में फूलों वाले डिजाइन भी बुने जा रहे हैं। प्रत्येक डिजाइन में एक से लेकर आठ रंग तक शामिल किए जाते हैं।