हिमाचल किसान सभा ने नसबंदी से बन्दरों की संख्या कम होने के दावे को किया खारिज

शिमाला। हिमाचल किसान सभा ने वन्य जीव विभाग के उस दावे को सिरे से खारिज किया है जिसमें उसने नसबंदी के कारण बन्दरों की संख्या में कमी आने का दावा किया है। हिमाचल किसान सभा के राज्याध्यक्ष डॉ. कुलदीप सिंह तँवर ने कहा कि वैज्ञानिक तौर पर किसी भी जंगली जानवर की संख्या में कमी लाने के लिए उनकी कुल संख्या के कम से कम 80 फीसदी हिस्से की एक विशेष समय में एक साथ नसबंदी करना ज़रूरी है। जबकि वन विभाग के आंकड़े बताते हैं कि हर साल 2 से 4 प्रतिशत तक ही नसबंदी की गई है। जिसका कोई प्रभाव पड़ने की संभावना नहीं है। डॉ. तँवर ने कहा कि किसान सभा इस बात से इनकार नहीं करती कि बनदरों की संख्या में कमी आई है। लेकिन यह कमी उन क्षेत्रों में आई है जहां बन्दरों के आतंक से आज़िज़ किसानों ने खुद उन्हें ज़हर देकर मारा है। सिरमौर जिला का ऊपरी क्षेत्र इसका उदाहरण है। लेकिन शिमला में जहां विभाग का विशेष ज़ोर बन्दरों की संख्या को कम करने का है वहां इसका कोई प्रभाव नज़र नहीं आता है। डॉ. तँवर ने कहा है अगर नसबंदी का असर हुआ होता तो सभी जिलों में बन्दरों की संख्या कम होनी चाहिए थी परन्तु सिरमौर के अलावा अन्य जिलों में बन्दरों की संख्या में कमी नहीं हुई है।

सांइंटिफिक कलिंग ही समाधान

डॉ. तँवर ने कहा कि किसी क्षेत्र विशेष में अगर क्षमता से ज्यादा जानवर हो जाते हैं तो उनका समाधान केवल सांइटिफिक कलिंग है। लेकिन हिमाचल में वन विभाग ने बन्दारों को वर्मिन होने के बावजूद भी उनको मारने के लिए कोई कदम नहीं उठाए। सारी ज़िम्मेदारी लोगों पर छोड़ दी जो अव्यवहारिक समाधान था क्योंकि किसानों के पास न बन्दूकें थी और न ही निशानेबाज़। उस समय भी हिमाचल किसान सभा ने सरकार और विभाग को सुझाव दिया था कि वह प्रशिक्षित निशानेबाज़ों की टीमें बनाकर वन विभाग और विशेषज्ञों की निगरानी में कलिंग की जाए। लेकिन सुझाव को अनसुना किया गया।

जंगली जानवरों का मानव आबादी में घुसना दोषपूर्ण वनीकरण का नतीजा

किसान सभा राज्य कमेटी सदस्य जयशिव ठाकुर ने कहा कि जंगली जानवर अगर मानव आबादी में घुस रहे हैं तो इसके लिए जनता को दोषी ठहराना बिल्कुल भी सही नहीं है। इसके लिए विभाग की वनीकरण की नीति दोषी है। गैरफलदार पौधे रोपने के कारण जंगली भोजन पर निर्भर रहने वाले वन्य प्रणियों को मजबूरन भोजन की तलाश में जंगलों से बाहर निकलना पड़ रहा है। हिमाचल में चीड़ के पेड़ों ने झाड़ियों और घास को खत्म ही कर दिया। हिमाचल में ही नहीं बल्कि देश भर में दोषपूर्ण वनीकरण की नीति का प्रभाव दिखाई देता है।डॉ. तँवर ने कहा कि प्रदेश में बन्दरों की संख्या मे कमी आने के दावे का सर्वेक्षण होना चाहिए और इसकी स्वतंत्र एजेंसी द्वारा जांच होनी चाहिए।

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