शिमला, 03 नवंबर। “आधुनिक भारत के प्रबुद्ध समाज: साहित्य और विज्ञान के संदर्भ में” विषय को लेकर को लेकर शिमला में भारतीय उच्च अध्ययन संस्थान द्वारा तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुक्रवार को शुभारंभ हुआ। तीन दिन तक चलने वाली इस गोष्ठी में भारतीय भाषा, परंपरा और विज्ञान विषय को लेकर गहन चर्चा होगी। तीन दिन तक चलने वाली इस संगोष्ठी में भारत के अलावा जर्मनी, ब्रिटेन, अमेरिका के 34 विद्वान हिस्सा ले रहे हैं।
राज्यपाल प्रताप शिव प्रताप शुक्ल ने संगोष्ठी का शुभारंभ किया और कहा कि संगोष्ठी में जो विचार निकल कर आयेंगे वह भारत की प्रबुद्ध परंपरा और संस्कृति के उत्थान के लिए महत्त्वपूर्ण योगदान देंगे।
उन्होंने कहा कि पूर्व में भारत के असली इतिहास को छुपाया गया और गलत इतिहास लोगों के सामने पेश किया गया। वर्तमान में देश को एक सशक्त नेतृत्व मिला है जिससे दुनिया में भारत की महतता बढ़ी है। नई शिक्षा नीति देश के सही इतिहास, संस्कृति और परंपरा को उकृत करने का काम कर रही है। दुनिया के कई देश आज भारत की तरफ देख रहे हैं और कई मसलों पर भारत का हस्तक्षेप चाहते हैं ताकि समाधान निकले। ऐसे में तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी में जो उद्धारण आएंगे उन्हें भी नीति निर्धारण में समायोजित करने का प्रयास किया जाना चाहिए।
उन्होंने कहा कि भारतीय साहित्य व विज्ञान पूरे विश्व का मार्गदर्शन करने की क्षमता है और हमारे विद्वानों को इस क्षेत्र में व्यापक शोध करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि साहित्य व विज्ञान के विकास तथा इनके संरक्षण में आधुनिक भारतीय प्रबुद्ध समाज जिनमें गुजराती वर्नाक्युलर सोसायटी, कर्नाटक विद्वावर्धक संघ, नागरी प्रचारणी सभा, उत्कल साहित्य समाज व असम साहित्य सभा की अहम भागीदारी रही है।
शिव प्रताप शुक्ल ने कहा कि इतिहास गवाह है कि अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत के कारण हर क्षेत्र में सम्पन्न भारत विश्व में ज्ञान व विज्ञान से प्राप्त समृद्धि के लिए प्रसिद्ध रहा है। देश की सांस्कृतिक, आर्थिक, अध्यात्मिक श्रेष्ठता व सम्पन्नता के कारण बड़ी संख्या में विदेशी भारत की ओर आकृष्ट हुए। इतिहास लेखन की तमाम विसंगतियों के बावजूद हमारा गौरवमयी इतिहास अक्षुण रहा है। भारतीय ज्ञान-सृजन और उसके प्रचार-प्रसार में प्रबुद्ध समाज की महत्वपूर्ण भूमिका के कारण अब भारतवर्ष ने पुनः अपना गौरव हासिल कर विश्व में खोई प्रतिष्ठा को पुनः अर्जित किया है।
उन्होंने कहा कि मां, मातृभूमि तथा मातृभाषा का कोई विकल्प नहीं है। यह चिंता का विषय है कि भारतीय सांस्कृतिक परम्पराओं के प्रति विश्वभर में आस्था, श्रद्धा व विश्वास में लगातार वृद्धि हो रही है, लेकिन हमें अपनी नई पीढ़ी को विदेशी संस्कृति का अंधानुकरण कर जीवन को अंधकार में धकेलने से सचेत करने की आवश्यकता है।