शिमला, 05 मार्च । हाइड्रो पावर प्रोजेक्टों से वाटर सेस वसुलने के मामले में हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट से सुक्खू सरकार को बड़ा झटका लगा है। हाईकोर्ट ने सुक्खू सरकार के हिमाचल प्रदेश वाटर सेस अधिनियम को खारिज करते हुए इसे असंवैधानिक करार दिया है। हाईकोर्ट के न्यायाधीश तरलोक सिंह चैहान और न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने 39 जल विद्युत कंपनियों की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह फैसला सुनाया है। 93 पन्नों के फैसले में हाईकोर्ट ने वाटर सेस अधिनियम-2023 के प्रावधानों को विधायिक से परे बताया है। हाईकोर्ट की खंडपीठ ने अपने फैसले में कहा है कि वाटर सेस अधिनियम के प्रावधान भारत के संविधान के अनुच्छेद 246 और 265 के दायरे से बाहर है और इस वजह से इसे रद्द कर दिया गया है। हाईकोर्ट ने उत्तरदाताओं यानी प्रदेश सरकार द्वारा याचिकाकर्ता पावर कंपनियों से वसूल की गई वाटर सैस की राशि को चार सप्ताह में वापस लौटाने के आदेश भी दिए हैं।
हाईकोर्ट के वरिष्ठ वकील रजनीश मनिकटाला के मुताबिक हाईकोर्ट ने फैसला में कहा है कि प्रदेश सरकार को इस तरह का कानून बनाने का अधिकार नहीं है। जब प्रोजेक्ट लगे तो सेस नही था, ऐसे में प्रोजेक्ट लगाने वालों के हित सुरक्षित नही रहेंगे। उन्होंने कहा कि हाईकोर्ट की नजर में वाटर सेस से जुड़ा कानून असवैंधिक है। संविधान के आर्टिकल 246 के तहत प्रदेश सरकार कानून बनाने का अधिकार नहीं है। ऐसे में अब सरकार पावर कंपनियों से कोई सेस नहीं ले पाएगी।
बता दें कि सुक्खू सरकार ने पावर प्रोजेक्टों पर वाटर सेस अधिनियम-2023 को 14 मार्च, 2023 को हिमाचल प्रदेश विधान सभा में पेश किया था और 16 मार्च, 2023 को इसे पारित किया गया।
दरअसल आर्थिक तंगी से जूझ रही हिमाचल सरकार ने अपना राजस्व बढ़ाने के लिए पनबिजली उत्पादन पर वाटर सेस लागू किया था। पड़ोसी राज्य उत्तराखंड और जम्मू-कश्मीर की तर्ज पर राजस्व जुटाने के लिए प्रदेश सरकार ने बिजली उत्पादन पर वाटर सेस लगाने का फैसला लिया था। प्रदेश सरकार के अनुमान के मुताबिक राज्य की छोटी-बड़ी करीब 175 पनबिजली परियोजनाओं पर वाटर सेस से सरकार के खजाने में हर साल करीब 700 करोड़ रुपए जमा होने थे। कुछ पावर कंपनियों ने वाटर सेस भी जमा करवा दिया था। अब सरकार को यह राशि उन कंपनियों को लौटानी होगी।