पौराणिक आस्था और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक बना कमरुनाग उत्सव
मंडी। हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में समुद्र तल से लगभग 9000 फुट की ऊँचाई पर स्थित पावन कमरुनाग झील और मंदिर परिसर में आषाढ़ संक्रांति के अवसर पर लगने वाले ऐतिहासिक वार्षिक कमरुनाग मेला का आज विधिवत समापन हुआ। इस अवसर पर प्रदेश भर से आए श्रद्धालुओं ने बड़ी श्रद्धा और आस्था के साथ ठाकुर कमरुनाग जी की पूजा-अर्चना की।
पौराणिक मान्यताओं से जुड़ा है कमरुनाग स्थल
कमरुनाग जी का मंदिर, जो पहाड़ी स्थापत्य कला में निर्मित है, पांडवों के आराध्य देवता के रूप में मान्य है। इस स्थल की पौराणिक महिमा और प्राकृतिक सौंदर्य, दोनों ही इसे एक अलौकिक तीर्थ स्थल बनाते हैं।
“बकरयाला साजा” की विशेष पूजा विधि
मेला आयोजन के साथ-साथ मंडी जिले और प्रदेश भर के श्रद्धालुओं ने पारंपरिक रीति से अपने-अपने घरों में भी कमरुदेव जी की “बकरयाला साजा” के रूप में पूजा की। इस पर्व की विशेषता है – आटे से बने दो बकरों की बलि, जो प्रतीकात्मक रूप से कमरुनाग जी और ग्राम देवताओं को अर्पित की जाती है।
घर-घर में हुई झील की प्रतीकात्मक स्थापना
श्रद्धालुओं ने इस दिन अपने घरों में पूजा स्थल पर थाली में जल भरकर उसमें कमरुनाग झील की प्रतीकात्मक स्थापना की। इस जल में देवदार वृक्ष के पराग (पठावा), पुष्प, सोने-चांदी के सिक्के अर्पित किए गए। पूजा के उपरांत विशेष व्यंजन जैसे “प्राकों”, मौसमी फल, मेवे, और अन्य नैवेद्य समर्पित किए गए।
कमरुदेव जी को दी गई आटे के बकरों की बलि
स्थापना के बाद गेहूं के आटे से बने दो बकरों को देवता के प्रतीक रूप में स्थापित कर धूप, दीप, पुष्प और आरती के साथ कमरुदेव जी को अर्पित किया गया। यही परंपरा “बकरयाला साजा” का मूल आधार मानी जाती है।
पारिवारिक सामूहिक प्रसाद वितरण की परंपरा
पूजन उपरांत इन आटे के बने बकरों के टुकड़ों को परिवार के सभी सदस्यों में प्रसाद रूप में बाँटा गया। इस प्रसाद को गाय के दूध, गुड़, मीठी सौंफ, छुआरे, अजवायन वाली रोटियों के साथ खाया गया और बंधु-बांधवों को भी वितरित किया गया।
सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व पर विद्वानों की राय
सुकेत संस्कृति साहित्य एवं जन कल्याण मंच के अध्यक्ष डॉ. हिमेन्द्र बाली “हिम” ने इस अवसर पर कहा, “नाग जाति हिमाचल की मूल शक्तिशाली जाति रही है, जिन्होंने आर्य शासकों से संघर्ष करते हुए अपने अस्तित्व की रक्षा की। कमरुनाग जी इसी परंपरा के प्रतीक हैं।”
वहीं, संस्कृति मर्मज्ञ डॉ. जगदीश शर्मा का कहना है कि, “यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था है बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है।”
समाप्ति पर आस्था और भक्ति का उल्लास
समाजसेवी निर्मल सिंह के अनुसार, “हर घर में की गई यह पूजा कमरुदेव जी को आमंत्रित करती है, जिससे वह अंश रूप में हर घर में विराजते हैं और आशीर्वाद प्रदान करते हैं।”
इस प्रकार मंडी जिले के इस ऐतिहासिक धार्मिक उत्सव का समापन आस्था, परंपरा और भक्ति की त्रिवेणी में स्नान कराते हुए श्रद्धालुओं के लिए अविस्मरणीय अनुभव बन गया।