विधानसभा में विधायक डॉ. जनक राज ने उठाई भेड़ पालकों की समस्याएं, सरकार से विशेष संरक्षण की मांग

 

चोरी, दवाइयों की कमी, चारागाहों पर पाबंदी और बाहरी पशुओं की बिक्री से संकट में परंपरागत भेड़ पालन व्यवसाय

धर्मशाला: हिमाचल प्रदेश विधानसभा में अपने उद्बोधन के दौरान भाजपा विधायक डॉ. जनक राज ने अपने निर्वाचन क्षेत्र सहित प्रदेश के भेड़ पालकों की गंभीर समस्याओं को प्रभावी ढंग से सदन के समक्ष रखा। उन्होंने बताया कि उनके क्षेत्र के लगभग 748 लोग हिमाचल प्रदेश वूल फेडरेशन में पंजीकृत हैं, जो परंपरागत रूप से भेड़ पालन व्यवसाय से जुड़े हुए हैं, लेकिन वर्तमान समय में यह समुदाय कई गंभीर संकटों का सामना कर रहा है।

डॉ. जनक राज ने कहा कि सर्दियों में प्रवास (माइग्रेशन) के दौरान चोरी की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं। उन्होंने बीते एक सप्ताह में लंज, ढक्की की धार, नूरपुर, लपियाना और रानीताल क्षेत्रों से भेड़-बकरियों की चोरी की कई घटनाओं का उल्लेख किया। इन घटनाओं की जानकारी उन्होंने पुलिस विभाग और स्थानीय प्रशासन को भी दी, लेकिन आज तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हो पाई है, जो अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण है।

उन्होंने कहा कि यदि किसी भेड़ पालक की एक बार में 15–20 भेड़ या बकरियां चोरी हो जाती हैं, तो उसकी पूरे वर्ष की कमाई समाप्त हो जाती है। यह इन गरीब पशुपालकों की आजीविका पर सीधा प्रहार है।

डॉ. जनक राज ने एक और गंभीर समस्या की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि पशुओं को दी जाने वाली जरूरी दवाइयों की रेट-कॉन्ट्रैक्ट समय पर नहीं हो पाई, जिसके कारण प्रवास के दौरान पशुपालकों को आवश्यक दवाइयां उपलब्ध नहीं हो सकीं। इससे पशुओं के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।

उन्होंने वन विभाग द्वारा चारागाहों के क्षेत्र को सीमित किए जाने, बाड़बंदी और निर्माण कार्यों पर भी कड़ी आपत्ति जताई। उन्होंने कहा कि भेड़-बकरियां पेड़-पौधों को कोई नुकसान नहीं पहुंचातीं, वे केवल घास चरती हैं, लेकिन इसके बावजूद आए दिन वन विभाग द्वारा चालान काटे जा रहे हैं और पशुपालकों को परेशान किया जा रहा है। कहीं-कहीं मिलीभगत के आरोप भी सामने आ रहे हैं, जो चिंता का विषय है।

डॉ. जनक राज ने यह भी कहा कि राजस्थान व अन्य राज्यों से पशुओं की बड़े पैमाने पर बिक्री के कारण स्थानीय भेड़ पालकों की भेड़-बकरियों की बाजार में मांग घट रही है। इससे यह परंपरागत व्यवसाय अब खतरे की जद में आ गया है।

उन्होंने अध्यक्ष महोदय के माध्यम से सरकार से आग्रह किया कि जनजातीय समुदाय से जुड़े भेड़ पालकों के इस परंपरागत व्यवसाय को विशेष संरक्षण प्रदान किया जाए, क्योंकि यह न केवल उनकी आजीविका है, बल्कि उनकी सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान भी है। यदि समय रहते इस पर ध्यान नहीं दिया गया, तो यह व्यवसाय समाप्ति की ओर चला जाएगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *