शिमला, 08 अगस्त। हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा काट रही एक महिला को संदेह का लाभ देते हुए तुरंत प्रभाव से रिहा करने के आदेश दिए हैं। पुलिस ने हत्या के आरोप में महिला को 11 वर्ष पहले गिरफ्तार किया था। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश रंजन शर्मा की खंडपीठ ने महिला की अपील को मंजूरी देते हुए सोलन की सत्र अदालत के फैसले को निरस्त कर दिया है। दरअसल सत्र अदालत की ओर से महिला को हत्या का दोषी करार देते हुए आजीवन कारवास की सजा सुनाई गई थी। अपील करने वाली महिला पर बीएसएनएल के एक अधिकारी को मौेत के घाट उतारने का आरोप था।
मामले के अनुसार मृतक 30 जून 2012 को शाम को सोलन के एक रिसॉर्ट में गया थ, लेकिन घर वापस नहीं लौटा। 1 जुलाई 2012 को मृतक को उसके वाहन में मृत पाया गया। उसके शरीर पर कई घाव और खून के बड़े धब्बे थे। इस संबंध में पुलिस थाना सदर सोलन में एफआईआर दर्ज की गई। जांच में सामने आया था कि मृतक को सीसीटीवी फुटेज में अपने दोस्त के साथ रिजॉर्ट में घुसते और उसके बाद शराब पीते देखा जा सकता है। रात्रि लगभग 1ः53 बजे मृतक को रिज़ॉर्ट पार्किंग में अपना वाहन पार्क करते हुए और उसके बाद आरोपी महिला (अपीलकर्ता) के साथ वाहन से बाहर आते देखा गया है।
संदेह के आधार पर आरोपी महिला को 3 जुलाई को गिरफ्तार किया गया और जांच में पता चला कि अपीलकर्ता महिला को वर्ष 2008 में मृतक द्वारा अनुबंध के आधार पर बीएसएनएल में नियुक्त किया गया था और अनुबंध वर्ष 2012 में समाप्त कर दिया गया था। मृतक ने उसे अपने दोस्त की स्वामित्व वाली एजेंसी में फिर से नौकरी दिलवाई थी। आगे यह भी पता चला कि अपीलकर्ता मृतक के साथ शारीरिक संबंध में शामिल था। अभियोजन पक्ष के अनुसार, उस दिन मृतक ने अपने कार्यालय के पास अपना वाहन खड़ा किया और अपीलकर्ता के साथ यौन संबंध बनाना चाहता था, लेकिन मासिक धर्म के कारण उसने इनकार कर दिया और फिर मृतक अपीलकर्ता के साथ अप्राकृतिक यौन संबंध बनाना चाहता था। मृतक के कृत्य का विरोध करने के लिए, अपीलकर्ता ने वाहन की पिछली सीट से चाकू उठाया (जिसे मृतक अपने वाहन में रखता था) और मृतक के निजी अंगों, पेट, छाती और बांहों पर कई वार किए, जिससे उसकी मौत हो गई। हत्या करने के बाद उसने चाकू को अज्ञात नंबर की गाड़ी में फेंक दिया। अभियोजन पक्ष का यह भी मामला है कि आरोपी ने मृतक की चाकू मारकर हत्या कर दी क्योंकि मृतक उसका यौन उत्पीड़न करता था और उसे अप्राकृतिक यौन संबंध बनाने और उसका एमएमएस तैयार करने के लिए मजबूर करता था।
परिस्थितिजन्य साक्ष्य के आधार पर ट्रायल कोर्ट ने आरोपी महिला को आईपीसी की धारा 302 के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई। सजा से व्यथित होकर अपीलकर्ता महिला ने उच्च न्यायालय के समक्ष अपील दायर की।
पक्षों के वकीलों की विस्तार से सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने पाया कि अभियोजन पक्ष परिस्थितिजन्य साक्ष्यों की श्रृंखला में कड़ियों को जोड़ने में बुरी तरह विफल रहा है। पहले तो इसने अस्वीकार्य साक्ष्यों पर भरोसा किया और फिर अपने अतिउत्साह के कारण कथित वसूली को प्रभावित करने की कोशिश की, वह भी स्वतंत्र गवाहों को शामिल किए बिना। कोर्ट ने कहा कि पूरी जांच संदेह से घिरी हुई है और इसलिए इस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। अभियोजन पक्ष मकसद स्थापित करने में भी विफल रहा है और पूरा मामला गंभीर संदेह पर टिका है। हाईकोर्ट ने माना कि हालांकि संदेह इतना प्रबल है कि इसे कानूनी सबूत की जगह लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती। इस पृष्ठभूमि में ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित दोषसिद्धि और सजा का फैसला टिक नहीं सकता है और उसे रद्द कर दिया गया है। अपीलकर्ता को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया गया है।