ठियोग के जनाहग क्षेत्र में बिशु मेले का आगाज हो गया है। स्थानीय देव परंपरा एवं नृत्य आदि रस्मों के बाद स्थानीय दल ने मेले का नेतृत्व किया और ढोल नगाड़ों की थाप के साथ मेले का शुभारंभ किया। बिशु मेलों के दौरान आज भी तीर-कमान से महाभारत का सांकेतिक युद्ध होता है। सैकड़ों लोग इस दौरान उमड़ते हैं।
मेले में जहां ठोडा नृत्य मुख्य आकर्षण का केंद्र होता है, वहीं कुश्ती के आलावा लोकगीत, हारुल व नाटी का भी आयोजन किया जाता है। बिशु मेला क्षत्रीय लोगों की प्राचीन सांस्कृतिक धरोहर है।देवता शिरगुल महाराज तथा चूड़ेश्वर महाराज के मंदिर में खुशहाली, सुख-समृद्धि के लिए फूल चढ़ाए जाते हैं। सबसे पहले लोग गांव के साझा आंगन में एकत्रित होते हैं। सभी फूल लेकर आते हैं फिर ढोल-नगाड़ों के साथ देव महिमा का गुणगान शुरू होता है। इसके बाद मंदिर में कुल देवता को फूल अर्पित किए जाते हैं। पूजा-अर्चना के बाद पारंपरिक नृत्य का आयोजन होता है और मेले का आयोजन शुरू होता है। क्षेत्र में अलग-अलग दिन व अलग-अलग जगह बिशु मेलों का आयोजन 3 दिन से लेकर पूरे माह चलता रहता है। मेले के दिन गांव में लोग एकत्रित होकर देवछड़ी को साक्षी मान कर आपसी भाईचारे में रहने का कुल देवता से आशीर्वाद लेते हैं। उसके बाद देवछड़ी को गाजे-बाजे के साथ मेला स्थल तक पहुंचाते हैं। इसके बाद लोकनाटी, हारुल का दौर शुरू होता है। पुराने जमाने में युवाओं व युवतियों के लिए रिश्ते मेलों के माध्यम से ढूंढे जाते थे। तब आपसी सम्पर्क के सूत्रधारक बिशु मेले ही हुआ करते थे।